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प्रेस संबंध प्रमुख कानून - प्रेस के कानून पत्रकारों के लिए कुछ विशेषाधिकारों का प्रावधान करते है और उन्हें कुछ कर्तव्यों के लिए बाध्य भी करते है। समाज के सुचारू रूप से संचालन के लिए सरकार को अनेक कानून बनाने पड़ते है। भारत के संविधान में सभी नागरिकों को प्रेस की आजादी का गारंटी दी गई है। परन्तु देश की सुरक्षा और एकता के हित में और विदेशों से सम्बन्धों तथा कानून और व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता या अदालत अवमानना, मानहानि या अपराध को प्रोत्साहन के मामलों में इस अधिकार पर राज्य द्वारा अंकुश लगाया जा सकता है। जो कानून प्रेस पर लागू होते है, वे इस प्रकार है-

मानहानि - भारतीय दण्ड संहिता (1860) की धारा 399 के अनुसार राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के अपना ईमानदारी, यश, प्रसिद्धि,प्रतिष्ठा, मान-सम्मान आदि के सुरक्षित रखने का पूरा खधिकार प्राप्त है। इस कानून के अनुसार जो कोई या तो बोले गए या पढ़े जाने के आशय से शब्दों या संकेतो द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में इस हादसे से लांछन लगता है तथा ऐसे लांछन से व्यक्ति की ख्याति की हानि होगी तो वह मानहानि का दावा कर सकता है। दावा साबित होने पर दोषी को 2 वर्ष की साधारण कैद या जुर्माना या दोनों सजा दी जा सकती है।

इसलिए पत्रकारों को इस मामले में सचेत रहना जरूरी है।अब प्रमाणित कथा सुनी सुनाई बातों के आधार पर किसी पर आरोप नहीं लगाया जाना चाहिए। कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हैं, जिनमें पत्रकार मानहानि के दो‌षों से बच सकता है। सार्वजनिक हित में किसी संस्था या व्यक्ति के आचरण पर टिप्पणी की जा सकती है। इसमें निजी स्वार्थ या बदला लेने की भावना ना हो।

संसद तथा विधान मंडलों के सदस्यों के विशेषाधिकार विश्व के प्रायः सभी देशों के संसद तथा विधान मंडलों के सदस्यों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त है। भारत में यह विशेषाधिकार हमारी शासन व्यवस्था में सन् 1833 से किसी न किसी रूप में विद्यमान है। इस विशेषाधिकार के अनुसार यदि संसद की कार्यवाही को तोड़-मरोड़ कर उस पर अनुचित या निंदाजनक टिप्पणी करके संसद की कार्यवाही से निकाली गई बातों को प्रकाशित करने पर विशेषाधिकार हनन का मामला बनता है।

न्यायालय की अवमाननासन्  - 1971 में न्यायालय की अवमानना का नया कानून पारित किया गया। यह कानून अत्यंत व्यापक है तथा थोड़ी भी असावधानी संपादकों और पत्रकारों को को मुसीबत में डाल सकती है न्याय प्रणाली की पवित्रता और विश्वसनीयताको बनाए रखने के लिए यह कानून बनाया गया है अवमानना की परिस्थितियाँ निम्नलिखित है - अगर न्यायालय के न्यायाधीश पर अनौचित्य और अयोग्यता का आरोप लगाया जाए अथवा उनके चरित्र के हनन का प्रयास किया जाए तो यह न्यायालय की अवमानना है।

न्यायपालिका की प्रतिष्ठा, गरिमा, अधिकार अथवा निष्पक्षता पर संदेह प्रकट करना।विचाराधीन मामलों में संबंधित जज, पक्षकारों तथा साक्षियों को प्रभावित‌ करने का प्रयास करना अथवा उन पर किसी प्रकार के आक्षेप लगाना अदालत की कार्यवाही की रिपोर्ट चोरी-छिपे प्रकाशित करना प्रेस परिषद अधिनियम भारत में समाचार पत्रों तथा समाचार समितियों के स्तर में सुधार एवं विकास तथा प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखने की आवश्यकता महसूस करते हुए भारतीय संसद ने सन् 1978 में प्रेस परिषद अधिनियम पारित किया। इसके उद्देश्य इस प्रकार हैं - समाचार पत्र तथा समाचार समितियों की स्वतंत्रता को कायम रखना महत्वपूर्ण तथा जनरुचि के समाचारों के प्रेषण पर संभावित अवरोधों पर दृष्टि रखना उच्च स्तर के अनुरूप पत्रकारों के लिए आचार संहिता तैयार करना।

भारतीय समाचार पत्र तथा समाचार समितियों को मिलने वाली विदेशी सहायता का मूल्यांकन करना पत्रकारिता से संबंधित व्यक्तियों में उत्तरदायित्व की भावना तथा जनसेवा की भावना को विकसित करना। मुद्रण रेखा(Print Line) संपादक और मुद्रक के दायित्वों को कानून की दृष्टि से वैध बनाने के लिए समाचार पत्र के किसी पृष्ठ पर (विशेषकर अंतिम पृष्ठ के किसी किनारे पर) संपादक, मुद्रक, प्रकाशक, प्रेस एवं कार्यालय का नाम कथा पते का विवरण देने की परिपाटी है। इस विवरण को ही मुद्रण रेखा के नाम से जाना जाता है इसके अलावा भी कई प्रेस संबंधित कानून है। जिन्हें ध्यान में रखकर पत्रकारिता करनी पड़ती है।

शासन व्यवस्था मीडिया की स्वतंत्रता - संदर्भ हाल ही में, उच्च न्यायपालिका ने एक आदेश पारित किया जो मीडिया के विनियमन से संबंधित है। एक आदेश में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के पूर्व महाधिवक्ता से जुड़े एक मामले के संबंध में कुछ भी उल्लेख करने से, मीडिया और यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरे मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसने एक समाचार चैनल के शेष एपिसोड के प्रसारण को रोक दिया, क्योंकि यह एक विशेष समुदाय को तिरस्कृत कर रहा था। हालाँकि दोनों आदेशों के प्रभाव वाक् स्वतंत्रता और जानकारी प्राप्त करने के नागरिक अधिकारों पर होंगे, उन्हें अलग-अलग संदर्भों में देखा जाना चाहिये। जहाँ प्रथम आदेश संभावित मानहानि या गोपनीयता के हस्तक्षेप को रोकने या मुकदमे या जाँच की निष्पक्षता की रक्षा करने के लिये परिकल्पित किया जा सकता है, वहीं दूसरे को घृणा के प्रचार पर रोक लगाने के रूप में देखा जा सकता है। इस संदर्भ में, व्यक्तिगत अधिकारों एवं स्वतंत्र प्रेस के मध्य उचित संतुलन की आवश्यकता है।

प्रेस की स्वतंत्रता - संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है - "सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा" वर्ष 1950 में, रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव पर प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।

हालाँकि, प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं - भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में, मानहानि या अपराध का प्रोत्साहन।

स्वतंत्र मीडिया का महत्त्व - स्वतंत्र मीडिया विचारों की मुक्त चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, निर्णय लेने की अनुमति देता है और परिणामस्वरूप समाज को सशक्त करता है - विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। जनता की आवाज़ होने के आधार पर स्वतंत्र मीडिया, उन्हें राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है।

स्वतंत्र मीडिया के साथ, लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करके अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त हो अतः मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, अन्य तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं वर्तमान में मीडिया से संबंधित मुद्दे निजता का अधिकार: निजता का अधिकार प्राकृतिक अधिकारों से उत्पन्न होता है, जो बुनियादी, निहित एवं अपरिहार्य अधिकार होते हैं। अनुच्छेद 21 जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, गोपनीयता के अधिकार की भी गारंटी देता है।

कई बार, मीडिया ने निष्पक्ष रिपोर्टिंग की अपनी सीमाएँ पार की हैं और व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप किया हैआरुषि तलवार हत्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किसी जाँच में पारदर्शिता और गोपनीयता दो अलग-अलग चीजें हैं। जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने मीडिया के एक वर्ग की रिपोर्टिंग पर प्रश्न उठाए जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित और उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।

मीडिया ट्राल: सहारा बनाम सेबी (2012) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि अदालत स्वतंत्र ट्रायल और एक स्वतंत्र प्रेस के अधिकार के संतुलन पर निवारक राहत प्रदान कर सकती है इसके अलावा, कई बार सर्वोच्च न्यायालय का विचार था कि मीडिया मुद्दों को इस तरह से कवर करता है कि यह एक ट्रायल की तरह लगता है।

चूँकि मीडिया द्वारा इस तरह के ट्रायलों से न्यायपालिका और न्यायिक कार्यवाही की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना होती है, अतः यह न्यायपालिका के कामकाज में भी हस्तक्षेप करता है।पेड न्यूज़ : पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ सार्वजनिक धारणा को तोड़-मरोड़ सकती हैं एवं समाज के अंदर विभिन्न समुदायों के मध्य घृणा, हिंसा, तथा असामंजस्य उत्पन्न कर सकती हैं।

निष्पक्ष पत्रकारिता की अनुपस्थिति एक समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति को जन्म देती है जो लोगों की धारणा और विचारों को प्रभावित करती है आगे की राह एक संस्थागत ढाँचा मज़बूत करना: भारतीय प्रेस परिषद, एक नियामक संस्था, मीडिया को चेतावनी दे सकती है और विनियमित कर सकती है अगर यह पाती है कि एक समाचार पत्र या समाचार एजेंसी ने मीडिया नैतिकता का उल्लंघन किया है।

न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) को वैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया जाना चाहिये जो निजी टेलीविजन समाचार एवं करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।

फेक न्यूज़ से निपटना: मीडिया में विश्वास बहाल करने के लिये मीडिया स्वतंत्रता को कम किये बिना मीडिया सामग्री से छेड़छाड़ और फेक न्यूज़ का सामना करने के लिये सार्वजनिक शिक्षा, नियमों को मज़बूत करने तथा प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा न्यूज़ क्यूरेशन हेतु उपयुक्त एल्गोरिदम बनाने के प्रयासों की आवश्यकता होगी।

फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के भविष्य के किसी भी कानून को पूरी तस्वीर को ध्यान में रखना चाहिये और मीडिया को दोष नहीं देना चाहिये एवं बिना सोचे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिये; नये मीडिया के इस युग में कोई भी अज्ञात लाभों के लिये खबर बना सकता है और प्रसारित कर सकता है मीडिया द्वारा नैतिकता का पालन: यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सत्यता और सटीकता, पारदर्शिता,स्वतंत्रता,औचित्यताएवंनिष्पक्षता,उत्तरदायिता जैसे मुख्य सिद्धांतों का पालन करती रहे।

निष्कर्ष - स्वतंत्र अभिव्यक्ति और अन्य समुदाय एवं व्यक्तिगत अधिकारों के मध्य संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है; यह ज़िम्मेदारी केवल न्यायपालिका द्वारा नहीं बल्कि उन सभी लोगों द्वारा वहन की जानी चाहिये जो इन अधिकारों का प्रयोग करते हैं।

मीडिया को ‘अभिव्यक्ति के अधिकार’ के तहत सूचनाओं के प्रसारण का अधिकार है परंतु यह प्रसारण ‘युक्तियुक्त निर्बंधन’ के तहत होना चाहिये। मीडिया की स्वतंत्रता से संबंधित हालिया घटनाओं की चर्चा करते हुए इस कथन का परीक्षण करें कि क्या मीडिया वास्तव में अपने इस अधिकार का दुरुपयोग कर रहा है? यदि हाँ, तो दुरुपयोग को रोकने के उपायों की चर्चा करें।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय न्यूज वेबसाइट व पोर्टल्स के लिए कानून लाने का विचार कर रही है - 4 अप्रैल को जारी एक विज्ञप्ति मे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक कमिटी बनाने की घोषणा की है जो कि ऑनलाइन छपने वाली समाचार संबंधित वेबसाईटों के लिए दिशा निर्देश तय करेगी वर्तमान मे ऑनलाइन न्यूज वेबसाइटों को किसी प्रकार की अनुमति अथवा रजिस्ट्रेशन की आव्यशकता नही होती है। यह वेबसाइट प्रेस इंफोरमेशन सेंटर के अधीन भी नही होते ना ही इन्हें नेशनल ब्रोडकास्ट असोसिएशन नियंत्रित करता है।

बड़ी जरूरत प्रेस व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद संचार साधनों के रूप मे डिजिटल मीडिया सबसे आगे है और इसकी बढ़ती लोकप्रियता के आधार पर यह आकलन करना कतई गलत नही होगा कि डिजिटल मीडिया जनसंचार के बाकी सभी साधनो को शीघ्र ही पीछे छोड़ देगा ऐसे मे जनसंचार के इस महत्वपूर्ण साधन को सरकार द्वारा मान्यता देना व अभीमनित किया जाना अत्यंत आवश्यक है सूचना एवं प्रसाधन मंत्रालय द्वारा बनाई गयी इस कमिटी मे सूचना एवं प्रसारण, गृह, विधि तथा औद्योगिक विकास मंत्रालय के साहित प्रेस कॉउंसिल ऑफ इंडिया तथा न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के प्रतिबंधि भी शामिल होंगे।

इस समिति मे कुल 10 सदस्य होंगे - एक निजी चैनल से बात करते हुए स्मृति ईरानी हाल में  ने कहा था कि सरकार एक ऐसा असरदार कानून लाना चाहती है जिससे मीडिया की आजादी पर कोई खतरा ना आए, साथ ही हम अनेक कड़ी सजा का प्रावधान करेंगे जो प्रेस मे रह कर दंगे फैलाते हैं।

ऑनलाइन मीडिया की जिम्मेदारी कई मामलों में ऑनलाइन पोर्टल्स जिम्मेदार भी हैं। कई बार ऐसे पोर्टल्स राजनैतिक पार्टियों के मुखपत्र की तरह काम करते हैं। इनका सन्चालन व प्रचार-प्रसार बेहद आसान होता है इसलिए कई बार राजनैतिक पार्टियों के आई. टी. विंग राजनैतिक औफिसों से इन पोर्टल्स का सञ्चालन करते हैं। ऐसे में खबरों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता हैं इन वेबसाइटों को शुरू करना व बन्द करना भी आसान होता है। तो हर महीने नए नाम से एक वेबसाइट शुरू करना व उनकी मदद से झूठी खबरें फैलाना कोई मुश्किल काम नहीं है।

दंगों की स्थिति में ऐसे पोर्टल्स के जरिये अपरिपक्व पत्रकारिता आग में घी डालने का काम कर सकती है इसलिए एक जिम्मेदारी तय करना नितांत आवश्यक है सन्देह यह फैसला अपने आप मे सही तो है पर फेक न्यूज पर मंत्रालय का पिछला फैसला व उसे वापस लिया जाना, इस फैसले को भी संदेह भारी नजरों से देखने पर मजबूर कर देता है।

ऐसे में सरकार की मंशा पर कुछ सवाल उठते हैं - जैसे - (1) कही यह ऑनलाइन मीडिया को सरकार के अधीन लाने की कोशिश तो नही है? (2) एक पत्रिका अथवा अखबार को छापने के लिए सरकारी अनुमति लेने का काम कठिन, पेचीदा तथा कागजी पहाड़ो से भरा है। कहीं ऑनलाइन न्यूज़ पत्रिकाओं के लिए भी तो ऐसे पेचीदे कानून नहीं बना दिए जाएंगे? (3) अगर वेबसाइटों को विनियमिट करने मे सरकार के अधोनस्थ किसी संस्था की कोई भागीदारी हुई तो क्या यह फैसला सरकार के प्रति चापलूस पोर्टलों को जन्म नही देगा?

सवाल यही हैं, पर सरकार की मंशा का पता तो कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद ही चल सकता है इस समय तो बस इतनी ही उम्मीद की जा सकती है कि सरकार जनसंचार के साथ बुरा वर्ताव नहीं करेगी।

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