तू तो है इंसान रे - सविता गर्ग सावी

तू तो है इंसान रे - सविता गर्ग सावी



क्या यकीं तुझको नहीं जो आजमाता है उसे

हो दुखी खोटी खरी फिर तू सुनाता है उसे

वो तो रखता है ज़रा सी चींटी का भी ध्यान रे

क्या तुझे वो छोड़ देगा तू तो है इंसान रे।


ज़र्रा भी उसने बनाया और पर्वत भी गढ़े

उसकी ही किरपा से तो ये वृक्ष भी तन कर खड़े

वो है शक्तिमान उसकी देख तो जादूगरी

सोचती हूँ मैं के कैसे सीप में मोती जड़े

व्यर्थ की चिंता में फिर तू क्यूँ पड़ा नादान रे

क्या तुझे वो छोड़ देगा तू तो है इंसान रे।


पेट गर उसने बनाया वो ही भरता है उसे

भक्ति का दे नाम जब तब काहे छलता है उसे

कुछ तो तेरे कर्म भी हैं जो तुझे मिलती सज़ा

हो दुखी तू कटघरे में ला खड़ा करता उसे

जानकर सब कृत्य अपने ना तू बन अंजान रे

क्या तुझे वो छोड़ देगा तू तो है इंसान रे।


वो ही तो है सृजनकर्ता और वही संहार है

सृष्टि के कण कण पे बन्दे उसका ही अधिकार है

वो ही देता है जनम वो ही मिटाता आप है

उसकी किरपा से ही घर में गूंजती किलकार है

ध्यान दे कर्मों पे अपने हो न तू परेशान रे

क्या तुझे वो छोड़ देगा तू तो है इंसान रे। 


सविता गर्ग सावी

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