अधिकार - सविता गर्ग सावी

अधिकार - सविता गर्ग सावी



सशक्त भाषण तैयार कर

साड़ी की क्रीज़ ठीक कर

वो चल पड़ी 

गरीब जनता को

उनके अधिकार समझाने

अच्छी खासी भीड़ देख


वो मुस्कुराई

लोगों ने भी जोश में

जय जयकार लगाई

एक घण्टे वो दीन जनता को

उनके अधिकार समझाती रही


बीच बीच में भावुक होकर

मगरमच्छी आंसू बहा

खुद को मसीहा बताती रही

भाषण खत्म होते ही

टूट पड़े सब ब्रेड पकोड़ों पर

जो उबलते तेल में 

तले जा रहे थे


अधिकार क्या हैं

कैसे पाने हैं

वो भूल गए

पेट की भूख ने 

पागल जो कर दिया

वो देख कर सबको

बड़बड़ाई

अचानक फोन पर चिल्लाई

तुम्हारा रोज़ का काम है


कभी खुद बीमार 

कभी बच्चा बीमार

अब बस और नहीं

काट कर दूंगी पगार

अधिकार समझाने वाली

खुद अधिकारों का

हनन कर रही थी


गरीबों की मसीहा

गरीबों पर बिफर रही थी।


सविता गर्ग सावी

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